महाशिवरात्रि का महत्व, महाशिवरात्रि पूजाविधि जानिए --- आप सभी शिव भक्तो को आचार्य कनक मिश्रा की तरफ से महाशिवरात्रि की बहुत- बहुत शुभ कामनाये |
महाशिवरात्रि का महत्व, महाशिवरात्रि पूजाविधि जानिए —
आप सभी शिव भक्तो को आचार्य कनक मिश्रा की तरफ से महाशिवरात्रि की बहुत- बहुत शुभ कामनाये |
हिन्दू धर्म के मान्यताओ के अनुसार कई पर्व त्योहार है, जिनमे से कुछ प्रमुख है | प्रमुख त्योहारों की सूचि में एक त्योहार महाशिवरात्रि भी सम्मिलित है | महाशिवरात्रि के नाम से ही पता चलता है , इस त्योहार में भगवान् शिव की पूजा आराधना की जाती है |
शिव जिन्हें कई नामो से भी जाना जाता है जैसे शंकर, भोले, महादेव, विषधर आदि, भगवान शिव को संघारक भी कहा जाता है | इनके रूप काफी अजीब एवं भयंकर है | इनके शरीर पर मसानो की भस्म लगी होती है, गले में सांपो की माला कंठ में विष, जटा में पावन गंगा सिर पर चंद्रमा, हाथो में डमरू और त्रिशूल और माथे पर प्रलयकारी ज्वाला है |
यह ध्यान रहे की हर चीज के पीछे एक कहानी होती है, जैसे कंठ में विष का होना , जब समुद्र मंथन हुआ, तब उसमे से विष भी निकला था, जिसे शिव जी ने अपने कंठ में रख लिया ताकि संसार को इससे बचाया जा सके और इसी कारण शिव जी को नील कंठ धारी भी बोला जाता है |
महाशिवरात्रि के पीछे कई पौराणिक कथा का मान्य है | हिन्दू धर्म ग्रन्थ शिवपुराण की विद्येश्वर संहिता के अनुसार भगवान ब्रम्हा और विष्णु के द्वारा इस पवन तिथि को भगवान भोलेनाथ के निराकार स्वरूप प्रतीक लिंग का पूजन सर्वप्रथम किया गया था |
अन्य मान्यता के अनुसार इस तिथि को भगवान शिव और देवी पार्वती की शादी रचाई गई थी | इन्ही सभी घटनाओ के कारण इस पावन तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है | कहा जाता है की भगवान शिव काफी भोले है और इन्हें मनाना बहुत आसान है, ये काफी आसानी से प्रसन्न हो जाते है और अपने भक्तो को वरदान देते है|
हिन्दू पंचांग के अनुसार महाशिवरात्रि फाल्गुन हिंदी माह के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी को मनाया जाता है |
हिन्दू पंचांग के अनुसार हरेक माह के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि पर्व होता है परन्तु इन सभी 12 माह में से फाल्गुन माह का पर्व अति उत्तम मना गया है और इस कारण इसे महाशिवरात्रि भी कहा जाता है |
लोगो का यह मानना है की संसार के निर्माण में इस दिन के मध्यरात्रि को भगवान शंकर का ब्रह्मा से रूद्र के रूप में अवतार हुआ था | प्रलय की वेला में भगवान शंकर तांडव करते हुए पूरे ब्रह्मांड को अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर दिए थे, इस कारण इस दिन को कई जगह पर “कालरात्रि” भी कहा जाता है |
हमारे अराध्य भगवान शिव जी को आप अपने अच्छे कर्म और केवल “ॐ नमः शिवाय” के जाप से प्रसन कर सकते है |
इसके अलावा आप इस मंत्र का जाप करें ————–
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
पूजा विधि ——————–
महाशिवरात्रि की पूजा संध्याकाल में या रात में होती है | इस दिन पूजा करने वाले सभी लोग दिन भर का उपवास रखते है और अपना सारा समय भगवान शिव के ध्यान में लगाते है | पूजा के उपरांत सभी मिलकर रात को जागरण करते है | अब आइये जानते है महाशिवरात्रि की पूजा कैसे की जाती है |
—-सर्वप्रथम पूजा की सभी सामग्री अपने पास एकत्रित कर इसे यथा-स्थान पर रख ले जिससे आपको बार बार उठना ना पड़े |
—–सामग्री रखने के पश्चात् एक शुद्ध आसन लगाकर स्थान ग्रहण करे |
—-स्थान ग्रहण करने के उपरांत हाथ में जल ले कर आचमन करे और आसन की शुद्धि करे |
—–हाथ को जोड़ कर स्वस्ति पाठ करे |
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:
स्वस्ति ना पूषा विश्ववेदा:
स्वस्ति न स्तारक्ष्यो अरिष्टनेमि
स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु।
—-इसके बाद पूजन का संकल्प ले और पूजा आरम्भ करे |
—–संकल्प लेने के बाद हाथ में अक्षत और बेलपत्र ले कर भगवान शंकर जी का ध्यान करे और भगवान को आसन प्रदान करे |
—–भगवान को आसन देने के बाद इन्हें दही, घी, शहद, शक्कर, पंचामृत, सुगंध जल स्नान कराए | इन सभी चीजे नहीं होने पर पंचामृत और जल से स्नान कराए |
—-स्नान के उपरांत भगवान को वस्त्र समर्पित करे और जनेऊ, पुष्प, बेलपत्र, चन्दन आदि चढ़ाए |
—आपके पास मौजूद प्रसाद का भोग लगाए और धुप दीप को प्रज्वलित करे|
——अपने हाथ में अक्षत, पुष्प या फल रखे और भगवान शिव को स्मरण कर महाशिवरात्रि की कथा को ध्यान पूर्वक सुने |
—–कथा समाप्त होने के बाद भगवान की आरती करे और अंत में भगवान से क्षमा-याचना के मंत्रौच्चारण के साथ अपनी गलती के लिए क्षमा मांगे |
आह्वानं ना जानामि,
ना जानामि तवार्चनम,
पूजाश्चैव न जानामि
क्षम्यतां परमेश्वर: !
में आचार्य कनक प्रार्धना करती हू महादेवजी से वो आप सब भक्तो पर अपना आशीर्वाद व् कृपा बनाये रखे |
आप सबकी मनोकामना भोलेनाथ पूर्ण करे | आप और कुछ जानना चाहते हे तो मुझसे संपर्क करे |
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